अपने
जीवन में प्रतिदिन हमने दिन -रात होते देखा होगा . बस हमारा मन भी इसी
दिन -रात की तरह ही है। कभी खुशियों का प्रकाश हमारे होठों मुस्कराहट
देता है, तो कभी गम के गहरे अंधियारे में हम कहीं खो जाते हैं। और जाने कब
हमारे आँखों से आसूं छलक जाते हैं ? हमारा इन भावनाओं पर कोई वश नहीं होता है, ठीक उसी प्रकार जैसे कि सूर्य उदय होने पर सूरज की किरणों को कोई धरती पर आने से कोई रोक नहीं सकता चाहे कितना भी घना कोहरा क्यों ना हो।
ये
जीवन भी उसी प्रकार है इसमें परेशानियाँ ,सुख -दुःख, धूप छाव की तरह ही
आते रहते हैं। जिन लोगो ने भी जन्म लिया है वो इन भावनाओं से अछूता नहीं रह
सकता है। मैं ये मानती हूँ कि जीवन में कुछ परेशानियों का हल मिल पाना
जल्दी सम्भव नहीं हो पता पर वो परेशानी भी तो हमेशा नहीं रहने वाली है। फिर
कैसा घबराना ? कैसी चिंता ? जीवन का निर्माण हुआ, तभी ये भावनाएं मन में
उम्र के साथ स्वतः ही आ गई। जब ये भावना नहीं होगी तो सुख -दुःख की अनुभूति
भी नहीं होगी ,फिर हमारा जीवन कैसा होगा जरा कल्पना कर के देखिये।
कोई परेशानी
इतनी भी बड़ी नहीं होती जिनसे हम पार ना पा सके। उस समय हमें
अपने आत्मविश्वास की रक्षा चाहिए कि वो कभी ना डगमगाए। जब मन दुखी होता
तो उस बात को अपने शुभ चिंतको कहना चाहिए। क्योकि दुःख बांटने से कम होता
है और ख़ुशी वो तो जितनी बाटी जाय उतनी बढ़ती है।