पारूल आज सुबह से ही बहुत परेशान थी। उसे समझ में नहीं आ रहा था कि वो क्या करें ? वो गुमसुम सी हो कर अपने काम को किये जा रही थी। पर काम खत्म होने का नाम ही नहीं ले रहा था। तभी पीछे से उसके पति ने उसे आवाज दी- क्या बात है ? आज बहुत बिजी हो। तुम्हारा काम खत्म ही नहीं हो रहा और ये क्या ? तुम तो जादू की सब्जी बना रही हो ! ऐसी सब्जी तो मैं कैसे हजम कर पाऊँगा ?
अपने पति की बात सुन पारूल ने नजर नीचे की ओर करके देखा । वह तो खाली कड़ाही में कल्छी घुमा रही थी। अजय उसके मन की परेशानी समझ गया था कि पारूल के मन में किसी बात की ऊथल-पुथल चल रही है। कोई बात हएै जो उसे बहुत परेशान कर रही है। उसने पारूल का हाथ पकड़ कर किचन से ड्राइंग-रूम में सोफे पर बिठाया और उसके कन्धे पर हाथ रख कर पूछा- क्या परेशानी है ? मुझे बताओ। सारे काम को रहने दो, बाद में होंगे। परेशान रहोगी तो न काम ठीक से कर पाओगी और चीनी वाली सब्जी मुझे ही खानी पड़ेगी।
अजय की बात सुनकर पारूल ने एक ठण्डी साँस ली। अजय की बातों से उसके उलझे मन को थोड़ी राहत मिली। उसने प्रकृति को कोटि-कोटि धन्यवाद दिया कि उसे अजय जैसा सुलझा और समझने वाला पति मिला है। वो अपने-आप को बहुत सौभाग्यशाली समझ रही थी।
उसकी सोच को अजय ने, चुटकी बजाकर, अपनी ओर खींचा। अजय ने कहा- मुझसे अपनी परेशानी कहोगी तो तुम्हारा मन हल्का हो जायेगा। पारूल ने अजय की बात सुनकर उससे कहा-आपको याद है, मेरी सहेलियाँ जया और रीना ! हम तीन सहेलियाँ आपस में कितने ज्यादे घनिष्ठ थे। हम तीनों की जोड़ी जग-जाहिर थी। जया, जो अमीर घराने से थी, नाजों में पली थी, थोड़ी सी भी परेशानी होने पर बहुत परेशान हो जाया करती थी और मैं मध्यम परिवार की थी। मेरे परिवार में बहुत चीजें तो नहीं हुआ करती थीं, पर किसी चीज की कमी भी नहीं थी। और वहीं, इसके विपरीत, रीना, जो बेहद गरीब घर से थी, वो अपनी माँ के साथ दिन-भर सिलाई का काम करके दो जून के खाने का बामुश्किल जुगाड़ कर पाती थी।