आजकल जहाँ कही भी देखिये, लोगों में एक बात सबसे कॉमन रूप से देखने को मिल जाती है और वो है कि -- दूसरों में दोष निकालना। चाहे वह व्यक्ति किसी भी उम्र का क्यों न हो, दूसरों पर दोषारोपण करने की आदत सभी की हो गई है। हमें दूसरों में दोष ही दिखाई देता है और उनकी कमी का पता चलते ही हम उसका मजाक बनाने से भी नहीं चूकते हैं। ऐसी भावना हमारे मन में क्यों आती है ? क्या कोई व्यक्ति सर्वगुणसम्पन्न होता है ? सभी में एक न एक कमी अवश्य ही होती है।
जब किसी बच्चे का जन्म होता है, तो वह सिर्फ खाना ,रोना और नित्य कर्म को ही जानता है। मगर दुनिया में आँख खोलने के बाद माता -पिता और समाज की सहायता के द्वारा ही जीवन जीने के गुणों और व्यवहारों को सीखता है। फिर हम किसी व्यक्ति का दोषारोपण कैसे करे सकते है, जिसको हमने खुद ही साँचे में ढाल कर निकाला है। अगर किसी में कोई दोष है, तो उस पर हँसने वालों की कोई कमी नहीं है। और जिसका मजाक बनाया जाता है, उसके मन पर क्या बीतती है इसके बारे में कोई सोचता तक नहीं है। अगर हम एक बार खुद के अंदर झांक कर देखते हैं तो क्या हमारा दिल हमें सबसे बेस्ट मनाता है ? ये जवाब हम खुद से नहीं पूछ सकते हैं, क्योंकि खुद की खामियों को स्वीकारनें के लिए बहुत बड़े जिगर की जरुरत होती है, जो सभी में नहीं होता है। मगर जो खुद की कमियों को स्वीकारतें है, वह ही उसको दूर करने में सफल भी होतें हैं।