ऐसा हम सभी के साथ होता है कि हम जब कुछ अच्छा करते हैं तो हमारे दिल में एक अलग प्रकार की सुख की अनुभूति होती है और जब गलत करते हैं , उस वक़्त उस पल जरूर हमारे मन को थोड़ा अच्छा लगता है ,लेकिन जीवन में जब हमारा किसी परेशानी से वास्ता होता है तो हमें पहले की हुई गलती का पश्चाताप होता है ,जिसे हम कभी भी पीछे जाकर सुधार नहीं सकते।
इस बदलते ज़माने के दौर में जहाँ लोग रिश्तों को फायदे से तोलने के बाद बनाते हैं , रिश्तें के अपनापन में पुश्त - दर -पुश्त बदलाव आता जा रहा है। पहले के लोग रिश्ते के प्रति इमोशनल होते थे। फिर एक दौर आया, जब लोग रिश्तों को प्रेक्टिकल हो कर देखने लगे कि किन रिश्ते को जोड़ने में हमें फायदा होगा उसी से खुद को जोड़ने लगे। आज -कल की सोच तो सबसे ज्यादा स्वार्थ पूर्ण हो गई है। आज के युग के लोग किस रिश्ते में कितना प्रतिशत फायदा पहुंचेगा ये सोच कर बनाते हैं।
क्या भावना किसी के हाथ की कठपुतली है कि जैसे जी चाहा उसका डोर वैसे ही खींचेंगे ? खैर इस पर जितनी चर्चा की जाय कम है। आज मैं किन बातों को लेकर बैठ गई और सोच के किस समंदर में डूब गई और उसके छीटें आप सभी पर पड़े। माफ़ कीजियेगा !