कल से मेरा मन बहुत उदास था। वजह तो नहीं जानती, मगर कुछ करने का मन नहीं कर रहा था। बस मन में यही बात थी कि कोई मुझसे बात न करे और मैं चुप-चाप बस सोचती ही रहूँ। परेशानी सिर्फ मुझे ही नहीं, मेरे जैसे ना जाने कितने लोगों को है। छोटी -छोटी बातों को दिल पर ले कर न जाने कितने समय तक हम सभी परेशान रहतें हैं ,उससे बाहर ही नहीं आ पाते। आखिर हमारे इन दुखों की वजह क्या है ? मैं मानती हूँ कि कुछ बातें ऐसी होती है, जो हमारे मन में घर कर जाती है, जिनको भूलना आसान नहीं होता। मगर क्या हमनें कभी सोचा है कि उन मुश्किलों का हम खुद ही ऐसा जाल बुन लेते हैं कि जिससे बाहर नहीं निकल पाते। आखिर हम खुश क्यों नहीं हैं ? हमारे दुख की वजह क्या है ?
धीरज नाम का युवक एक ऐसी ही परेशानी का हल ढूढ़ने एक बाबाजी के पास गया। बाबा जी सभी तरह की परेशानियों का समाधान करते थे। धीरज ने भी दुखों की लम्बी -चौड़ी लिस्ट बाबा जी के सामने रख दी, जिसका वो समाधान चाहता था। बाबाजी ने धीरज कहा," बेटा ! अभी घर जाओ कल आना और अपने साथ एक बड़ा पत्थर ले आना।" अगले दिन धीरज घर से एक बड़ा पत्थर ले आया और उसने उसे बाबा जी के सामने रख दिया। फिर बाबाजी ने धीरज को उस पत्थर को हाथ में उठाने के लिए कहा। फिर बोले नीचे रख दो। एक बार फिर सिर पर रखने को बोले । फिर वापस नीचे रखवा दिया। थोड़ी देर बाद जाने लगे और धीरज से पत्थर को सिर पर रख कर अपने पीछे आने को कहा।धीरज ने वैसा ही किया।