आज कल एकल परिवार की ही प्रथा हर कही देखनें को मिल रही है। कोई भी संयुक्त परिवार में रहना नहीं चाहता। जब हम कभी परेशानियों में होते है और हमें किसी की राय की जरूरत महसूस होती है तो हमें लगता है कि हमारे सिर पर बड़े बुजुर्गों का हाथ नहीं है। उनके जीवन के अनुभवों से हमारी जिंदगी कितनी आसान हो जाया करती थी । एकल परिवार के बच्चों में वो संस्कार ,सदस्यों से भावात्मक जुड़ाव कहाँ देखने को मिलते है ? वो कहानियां, जो बच्चों के बौद्धिक विकास में सहायक होती थी, जिनके द्वारा वो ना जाने कितने ज्ञान बिना किताबों के हासिल लेते थे, आज गायब सी हो गयी हैं । बच्चों के हाथ में आज केवल टी.वी का रिमोट होता है, जिससे वो सिर्फ कार्टून देखते हैं या वीडियो गेम्स खेलते हैं। आइये, आज शहर में रहने वाले एकल परिवार की जिंदगी के बारे में जानते हैं।
अलार्म की आवाज से सुधा की नींद टूटी उसने देखा सुबह के 8 :00 बज गएँ हैं, वह घबरा कर कमरे से बाथरूम की तरफ भागी फिर उसने बच्चों को जगा कर तैयार किया। सुधा ने अपने पति रवि को भी जगाया। तब तक काफी समय हो गया था। सुधा ने रवि से कहा ,"बच्चों को रास्ते में कुछ खिला देना और तुम भी कुछ खा लेना। मैं कुछ बना नहीं सकी। मैं ऑफिस जा रही हूँ। " फिर सभी अपनी-अपनी मंजिल पर निकल गए।