क्या बात थी ? आज रामू बहुत खुश था। बहुत ही ज्यादा खुश। आज जीवन में पहली बार उसकी हाथों में मीठे ,शुद्ध देशी घी से बने पेड़ा का दोना जो था, जिसकी केसर और इलायची खुशबू रामू के तन -बदन को महका रही थी। वह बस एक टक पेड़े के दोने को देखे जा रहा था। तभी मालकिन की आवाज सुन कर रामू की तन्द्रा टूटी। मालकिन ने रामू से कहा," साहब ने जो कागज दिया था, वो कहाँ है ?"। रामू को मालिक ने जो कागज दफ्तर से घर ले जाकर देने को कहा था, उसने उसे मालकिन के हाथों में पकड़ाते हुए, वह एक बार फिर से पेड़ों की मिठास की दुनियां में खो गया। वह यही सोच रहा था कि ये पेड़े खाने में कितने स्वादिष्ट होंगे।
तभी मालकिन ने रामू से कहा,"रामू ! बैठे क्यों हो ? खाओ ना। " मालकिन की बात सुन कर रामू को रहा न गया और उसने एक पेड़ा उठाकर मुंह में रख ही लिया। फिर उस पेड़े की मिठास से रामू का रोम -रोम आनन्दित हो गया। एक पेड़ा खाने के बाद उसको अपने परिवार का ख्याल आया।