वफ़ा क्या होती है ? क्या हम इसे भली -भाँति समझते हैं ? दूसरों का ख्याल रखना ,बात को मानना या फिर प्रेम को जाहिर करना, क्या इसी को वफ़ा कहतें हैं ? कुछ लोग सामने वाले की नाराजगी और घृणा को सह कर भी अपनी वफ़ा को प्रदर्शित करते हैं। मगर मैं नहीं मानती ऐसे वफ़ा को। क्योंकि हम इंसान हैं। हमें हक़ है अपने बारे में सोचने का। हमारे पास ईश्वर की कृपा से मस्तिष्क रूपी यन्त्र है, जिसके द्वारा हमें सही और गलत के फर्क का ज्ञान होता है।
मगर वो बेजुबान, जिनको ईश्वर ने जुबान भी नहीं दिया और जो अपनी भावनाओं को कह कर व्यक्त भी नहीं कर सकतें हैं , उनके बारे में हमनें क्या कभी सोचा है ? हमने अक़्सर फल मंडी,सब्जी मंडी, बाजारों में जानवरों को फलों -सब्जियों में मुँह लगाने पर मार खाते देखा होगा। दुकानदारों के हाथों में जो कुछ भी आता है, वो उसी से मारने लगतें हैं - कभी -कभी जानवरों के पैर टूट जातें हैं ,और चोट खाने से उनकी त्वचा तक फट जाया करती है। वो कुछ कर नहीं पाते।