श्याम और दिवाकर बहुत ही अच्छे दोस्त थे। अपना हर सुख-दुख एक दूसरे के साथ बाँटते थे, एक साथ समय बिताते और ऐसे ही एक दूसरे को जानते हुए उन्हें बीस वर्ष हो गये । ये बचपन के दोस्त जो थे। अब एक ही कम्पनी में जाॅब भी करते थे। पर एक दिन दिवाकर के मोबाइल में एक लड़की की तस्वीर देखकर श्याम हैरान रह गया। उसने दिवाकर से प्रेम -प्रसंग छुपाकर रखने के कारण थोड़ा गुस्सा भी दिखाया। पर दिवाकर ने कहा- "मैंने इसकी थोड़ी मदद कर दी थी तो बस दोस्ती हो गयी, यार श्याम जब कुछ ऐसा होगा तो, मैं सबसे पहले तुझे बताऊँगा।"
पर श्याम की आँखों में उस लड़की का चेहरा समा गया था। मन ही मन वो उसे चाहने लगा था। फिर एक दिन अचानक उस लड़की से श्याम की मुलाकात हो गई। 'माया' नाम था उसका। वो किसी से ज्यादा मेल-मिलाप ना रखने वाली लड़की थी। पर दिवाकर का नाम सुनकर दोस्ती करने को तैयार हो गई और यह दोस्ती धीरे-धीरे कब प्यार में बदल गई ये श्याम और माया दोनों को ही पता नहीं चला।
एक दिन श्याम ने माया से अपने दिल की बात कह दी पर माया ने शादी की बात को टाल दिया। फिर एक दिन अचानक लखनऊ जाने की बात कह कर चली गई और फिर उसका कोई अता-पता नहीं चला। श्याम ने दिवाकर से अपने और माया के बारे में सारी बात बता दी तो दिवाकर से उसे उस कम्पनी का नाम और फोन नम्बर मिला जहाँ माया काम करती थी। कम्पनी ने उसे माया के घर का नम्बर दिया। श्याम ने उसे घर पर फोन किया तो माया ने फोन उठाया और उसने कहा कि उसके पापा को हार्ट अटैक आया है और बीमार हैं। वो उसकी शादी अपने दोस्त के बेटे के साथ जल्दी कराना चाहते हैं, जो एक अच्छी जगह पर जाॅब करता है। उसकी सैलरी बहुत अच्छी है, घर बहुत बड़ा है। माया उस अन्जान शख्स के तारिफों के पुल बाँधती रही और श्याम सुनता रहा।
अचानक श्याम ने माया को टोका और पूछा- "हमारे प्यार का क्या ?" माया ने श्याम को उत्तर दिया, जिसकी उसे कभी भी उम्मीद नहीं थी। उसने श्याम से कहा- "समय के साथ सब धुँधला हो जाता है। यदि पैसा और पोजीशन न रहा तो जीवन कैसा ? मेरी मानो तुम भी जिन्दगी में आगे बढ़ो और कहीं अच्छी जगह जाॅब कर लो, जहाँ सैलरी जीवन जीने लायक मिले।"
माया की बात सुनकर श्याम हतप्रभ सा रह गया कि उसने प्यार के बारे में जो सुना था, क्या वो यही है ? जिसके लिए लोग मर भी जाते हैं। श्याम ने माया को फिर कभी पलट कर नहीं देखा। शायद यही सच्चे प्यार की पहचान थी, जिसे श्याम ने निभाया।
समय बीतता गया। श्याम को एक दिन काॅल आया। दिल्ली से कोई कम्पनी उसे जाॅब ऑफर करना चाहती थी। श्याम भी अब उस शहर से दूर हो जाना चाहता था, सो उसने ऑफर स्वीकार कर लिया। उसी दिन माया की भी शादी थी। श्याम अपनी आँखों में आँसू लिए रवाना हुआ।
धीरे-धीरे चार साल बीत गए। श्याम की मेहनत और लगन श्याम को एक ऐसे मुकाम पर ले आई, जहाँ उसे अब पैसे की कोई कमी नहीं रह गई थी। वह उसी कम्पनी में जनरल मैनेजर के पद पर कार्यरत था और कम्पनी द्वारा दिये गये फ्लैट में रह रहा था।
एक दिन दिवाकर का फोन आया और उसने श्याम का अपनी शादी की बात बताई। श्याम यह सुनकर बहुत खुश हुआ। एक हफ्ते बाद शादी थी। दिवाकर श्याम का सबसे अच्छा दोस्त था। कुछ रिश्ते सच्चे व सुन्दर होते हैं, जो वक्त की आँधियों में भी अपनी लालिमा नहीं खोते।
आज दिवाकर की शादी में जाने के लिए श्याम तैयार हुआ। काले सूट में वह बेहद आकर्षक लग रहा था। अपनी कार से वह शादी समारोह वाले स्थान पर पहुँचा। दिवाकर उसे देख कर बहुत खुश हुआ। उसने उसे अपने सभी जानने वाले लोगों से मिलवाया। तभी श्याम की नजर लाल साड़ी पहनी हुई एक महिला पर पड़ी। वो और कोई नहीं उसकी माया थी, जो अपने पति के साथ दिवाकर के शादी में शामिल होने के लिए आई थी।
माया के पति ने श्याम को देखते ही ‘सर’ कह कर सम्बोधित किया। श्याम ने भी उत्तर में सिर हिलाया। माया ने अपने पति से पूछा- ‘‘ये आपके बाॅस हैं ?’’ माया श्याम से कुछ कहती, उससे पहले ही श्याम चार कदम आगे बढ़ गया।
माया ने उसे पीछे से आवाज दे कर बुलाना चाहा, पर श्याम ने ऐसा दिखाया कि वो माया को जानता ही नहीं।
माया अब समझ चुकी थी कि श्याम अब वो श्याम नहीं रह गया था। वह बदल चुका था। अब माया श्याम के लिए एक इम्प्लाय की पत्नी मात्र बन कर रह गई थी। और ये मुलाकात माया को जीवन भर कचोटती रहेगी।