दोस्ती हमारे जीवन में बनने वाले उन सभी रिश्तों में सबसे अनूठा, एक अलग प्रकार की अनुभूति कराने वाला रिश्ता होता है। सभी रिश्ते तो हमें बने बनाए मिल जाते हैं, पर दोस्ती तो हम स्वयं अपने मन पसंद, दिल को अच्छा लगने वाले साथी से ही करते हैं। दोस्ती एक ऐसा रिश्ता होता है, जिसमें ऊंच -नीच, जात-पात, गरीबी-अमीरी नहीं होती। एक सच्चा मित्र मिल जाने के बाद जीवन में आने वाली ना जाने कितनी मुश्किलों का समाधान मिलता चला जाता है।
सबसे अनोखी होती है -- हमारे बचपन की दोस्ती। इसके क्या कहने ! इसमें हर छोटी सी छोटी चीज शेयर करने का अपना अलग ही आनंद होता है। लंच में माँ ने कितनी भी टेस्टी चीज खाने को क्यों ना दीं हों, पर दोस्त के साथ निवाला खाये बिना सब फीका लगता है। वो हमारी पानी की बॉटल, जो हम सभी दोस्तों के ना जाने कितनी बार होठों से लगकर हमारी प्यास बुझाया करती थी, ना जाने उस बॉटल में ऐसा क्या था जो, फिर भी जूठी नहीं होती थी।
दोस्तों के साथ मस्ती करना, गप्पे मारना, घूमना, पढ़ना, खाना-पीना किसे अच्छा नहीं लगता है ? शायद ही कोई ऐसा शख्स होगा जो इस अनोखे रिश्ते से अछूता होगा। हम सभी ने, न जाने कितनी शरारतें अपने दोस्तों के साथ मिलकर की होंगी। क्या आपने नहीं की हैं ? मुझे पता है, बहुत की हैं। जो याद आते ही, लगता है कि, वो दिन काश ! एक बार फिर लौट आते। मगर वास्तविकता यह है कि यादें तो बार-बार जीया जा सकता है, मगर गुजरा जीवन नहीं लौट सकता।
मुझे याद आता है, वो स्कूल का समय। जब हम सात सहेलियाँ, जो बहुत ही अच्छे से एक दुसरे के मन को समझते थे, उसमे एक सीमा नाम की मेरी दोस्त थी। जिसके पिता जी कपडे धोने का काम किया करते थे। हम सभी इस बात को जानते थे। उसके घर की स्थिती भी अच्छी नही थी।
लेकिन वह स्वभाव की इतनी अच्छी थी कि हमने उसे अपना सबसे अच्छा दोस्त बनाया। हम सभी हमेशा एक ही सीट पर बैठ कर अपने टिफ़िन को शेयर करते थे। सीमा को मैंने कभी लंच बॉक्स लाते नहीं देखा। बस कागज पॉलीथिन में जैसे-तैसे रोटी ले आती थी और रोटियों के साथ कभी अचार तो कभी प्याज होता था। फिर भी हम सभी उसके साथ प्यार से अपने-अपने लंच को शेयर किया करते थे।
कभी भी उसे यह अहसास नहीं होने देते थे कि वह गरीब है। उसके पास एक छोटा सा कपड़े का थैला होता था, जिसमे वह रोज हम सभी के लिए न जाने कहाँ से अमरुद ले आती थी। वो हम सभी के सबसे अनोखे पल होते थे, जब हम उसे एक साथ खाते थे।
स्कूल की पढाई पूरी हो जाने के बाद जब मैं कॉलेज गई,तो मित्रता में कुछ परिवर्तन आ गया। सभी ने अलग-अलग कालेजों में एडमिशन करा लिया और मेरी फिर नई सहेलियाँ बनी, जो बहुत ही मॉडर्न विचारों की थीं। उनसे मैंने बहुत कुछ सीखा भी।
दोस्ती की कोई उम्र और सीमा नहीं होती। कई लोगों को लड़के और लड़कियों की दोस्ती पसंद नहीं आती। लेकिन दोस्ती से पाक़ रिश्ता भला क्या हो सकता है ? बस दोस्ती की कुछ मर्यादाएँ होती हैं, जिन्हें याद रखना चाहिए। कुछ चंद लोगों के इन मर्यादाओं को लाँघ जाने की वजह से माता-पिता लड़के लड़कियों की दोस्ती को नहीं स्वीकारते।
यदि हमें अपने इस प्यारे दोस्ती के रिश्ते को बचाना है, तो इसकी मर्यादा और विश्वास को धूमिल नहीं होने देना है। क्योंकि दोस्त रूठ जाये तो मनाया जा सकता है, पर दोस्ती का विश्वास खो जाने पर कभी नहीं लौटाया जा सकता है।
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