संजय और सीमा एक-दूसरे से बहुत प्यार करते थे। प्यार काॅलेज के समय से था। दोनों में बहुत सामन्जस्य था, एक-दूसरे की हर पसन्द-नापसन्द को बखूबी समझते थे। इसलिए पढ़ाई पूरी कर दोनों ने शादी का फैसला लिया तो दोनों के परिवार वाले राजी भी हो गये। पर शादी भी झटपट हो गई, जैसे कि कायनात इन दोनों को मिलाने के लिए जुट गई हो।
दोनों का विवाह हो जाने के बाद सभी बहुत खुश थे। दिन बीते, महीने बीते, साल बीते और जैसा हर शादी के बाद होता है- उन दोनों पति-पत्नि में भी छोटे-मोटे झगड़े होना शुरू हो गये। प्यार तो खत्म ही हो चुका था। बस बची थी-नाराजगी। कभी छोटे-छोटे कारणों पर झगड़े होते तो कभी झगड़े का कारण भी पता नहीं चल पाता था।
संजय अपने ऑफिस जाकर घर की समस्या को अपने काम और अपने साथियों के बीच भूल जाता था। पर सीमा उसी ऊहापोह में सारा दिन बिताती थी, जिसकी वजह से वह बहुत बीमार रहने लगी थी। उसकी सेहत दिन-ब-दिन गिरती जा रही थी। उसकी पड़ोस में रहने वाली आण्टी ने उसे सलाह दी कि किसी डाॅक्टर को दिखा दो- तुम्हारी हालत ठीक नहीं लग रही है।
सीमा भी अब परेशान हो चुकी थी। लगातार रहने वाला सर का दर्द उसे जीने नहीं दे रहा था। उसने चेकअप कराया, जहाँ उसे ब्रेन-कैंसर का पता चला। संजय को बताना उसने उचित नहीं समझा अपना इलाज कराना शुरू कर दिया।
सीमा और संजय में लगातार दूरियाँ बढ़ती जा रही थीं। फिर एक दिन संजय ने सीमा को बताया कि उसे बिजनेस के सिलसिले में दो-तीन दिनों के लिए मुम्बई जाना है और यह बात कहकर वो बैग उठाकर चल दिया। सीमा संजय से कहने ही वाली थी कि उसे कैंसर है और उसे संजय की जरूरत है, पर संजय जा चुका था। संजय के जाने के बाद सीमा उदास रहने लगी। इतना परेशान कि बीमारी ने उसे और जकड़ लिया।
एक दिन उसकी तबियत ज्यादा खराब हो गई और वह मार्केट में बेहोश होकर गिर पड़ी। उसे हाॅस्पिटल ले जाया जा रहा था। वो समझ नहीं पा रही थी कि संजय से कैसे बात करे। फिर उसकी पड़ोसन ने संजय को खबर दी पर सीमा के अस्पताल में होने की बात नहीं बताई। संजय ने कहा कि दो दिन और लगेंगे। संजय किसी काम से नहीं बल्कि थोड़ा सुकून से अकेले रहने गया था।
सीमा उसका इन्तजार करती रही, पर संजय नहीं आया, फिर डॉक्टर ने बताया कि सीमा को हम नहीं बचा पायेंगे, यदि इनका कोई जानने वाला हो तो तुरन्त कर दें। पड़ोसी ने संजय को फोन मिलाया तो संजय ने सीमा का नम्बर देख कर गुस्से में नहीं उठाया और सब कुछ खत्म हो गया- सीमा भी और इन्तजार ।
आज संजय जब भी सीमा की फोटो देखता है तो यही सोचता है- काश! उस दिन घर से नहीं निकला होता। नाराज था, पर नफरत नहीं करता था। सीमा को उन मुश्किल भरे समय में जब मेरी सबसे ज्यादा जरूरत थी तो मैंने उससे मुँह मोड़ लिया। क्या मैं उससे इतना नाराज था ? क्या हमारा गुस्सा इतना बड़ा था कि प्यार ही छोटा पड़ गया और आँसू लिए जमीन पर बैठ गया, क्योंकि वो जानता था कि सीमा भी उससे नाराज थी। पर प्यार तो दोनों को ही एक-दूसरे से था।
इस छोटी सी प्यार की कहानी के माध्यम से मैं हर उस प्यार करने वाले इन्सान से कहना चाहती हूँ कि आप कितने ही नाराज क्यों न हों, पर अपने प्यार को कभी भी खुद से दूर ना होने दें और रिश्तों में गलतफहमी की जगह को बनने ही ना दें।
क्योंकि जहाँ प्यार है, वहीं तो नाराजगी है, शिकायतें हैं।
आज के अंक में इतना ही !
Image:Google
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