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मंगलवार, 28 सितंबर 2021

निराकरण

 

NIRAKARAN IN HINDI - EK NAI DISHA


हम सभी के साथ ऐसा  होता है, हर इन्सान जन्म लेता है और जन्म के साथ ही निरन्तर सीखने की प्रक्रिया शुरू हो जाती है और सीखना वृद्धावस्था तक जारी रहती है। हमें हर पल कुछ न कुछ सीखने को मिलता है। ये हम पर निर्भर करता है कि हम जीवन को सुन्दर बनाने योग्य बातें मन में धारण कर मन व जीवन को सुन्दर बना लें या फिर कुविचारों को आमंत्रण दें, जो हमारे जीवन को व्यर्थ बना देते हैं। जो विचार दूसरों को खुशी दें, ऐसे विचार अपने मन को शीतल बनाते ही हैं, साथ ही साथ आस-पास के वातावरण में रहने वाले लोगों को भी। 


सच ही किसी ने कहा है कि हमारा मन हमारा प्रतिबिम्ब होता है। हमें थोड़ा समय अपने मनरूपी प्रतिबिम्ब में अपने-आप को जरूर देखना चाहिए कि हमने क्या अच्छा किया और क्या बुरा किया ? क्या सार्थक किया और क्या निरर्थक ? कहीं हमारा जीवन व्यर्थ तो नहीं जा रहा। हम अपने पीछे बीते दिनों को याद कर कहीं  अपना आने वाला कल तो नहीं बिगाड़ रहे ?


बार-बार पीछे की बातों को याद कर बीती गलतियों को सोच-सोच कर मन को परेशान कर हम अपने आप को दोषी ठहराते रहते हैं और ‘हम अभी भी जीवन में आगे कुछ अच्छा कर सकते हैं’ ऐसा सुन्दर विचार को मन में आने ही नहीं देते। ऐसे दूषित विचार से हमारा आज तो खराब होता ही है, हमारा आने वाला कल भी बिगड़ने की कगार पर आ जाता है।


तो मैं आप सभी से यही कहना चाहती हूँ कि पुरानी बीती बातों से पछतायें नहीं, बल्कि कुछ सार्थक रास्ता ढूँढें। क्योंकि हर क्षण कीमती होता है और उसे यूँ ही बर्बाद नहीं करना चाहिए। 


आइये, एक छोटी कहानी के माध्यम से सुन्दर सीख लेते हैं।

एक बार एक राजा जंगल में शिकार के लिए गये और रात हो गई। अंधेरा हो जाने की वजह से राजा रास्ता भटक गये। राजा को जंगल में एक झोपड़ी दिखाई दी, जो एक किसान की थी, तो राजा उस झोपड़ी की तरफ बढ़ गये। किसान से अनुमति लेकर राजा किसान के यहाँ पूरी रात ठहर गये। किसान ने राजा की खूब आव-भगत की। राजा ने किसान की सेवा व खातिरदारी से खुश होकर किसान को एक वन भेंट-स्वरूप दे दिया। वो वन चंदन की लकड़ी का था। किसान इस बात को नहीं जानता था। किसान को चंदन के मूल्य का तनिक भी आभास नहीं था, सो उन चंदन के पेड़ों की लकडि़यों को काट कर कोयला बना कर बाजार में बेचने लगा। 


पर एक रात मौसम खराब हो जाने की वजह से उसकी जमा की हुई सारी लकडि़याँ भीग गईं और वह उन लकडि़यों से कोयला नहीं बना सका। उसने चंदन के पेड़ से कुछ टहनियाँ काट कर बाजार में बेचने गया। वो लकडि़याँ चंदन की थीं, तो उसकी खुशबू  हवा में फैलने लगीं। लोग उन लकडि़यों की मुँह-माँगी कीमत देने को तैयार हो गये। किसान हतप्रभ रह गया। उसे कुछ समझ में नहीं आ रहा था कि ऐसा क्यों हो रहा है ? 


एक ग्राहक से जब उसने पूछा तो उसने बताया कि तुम्हारी लकड़ी चंदन की है, जो बेशकीमती होती है और उसकी कीमत के भी बारे में उसे बताया। ग्राहक की बात सुनकर किसान की आँखों में आँसू आ गये। उसने मन में सोचा- मैंने अन्भिज्ञता में ना जाने कितनी कीमती लकडि़यों को जला दिया, कोयला बना दिया। उसे यह एहसास हुआ कि जानकारी के अभाव में उसने चंदन की लकडि़यों को नाहक ही बर्बाद कर दिया।


तभी एक साधु वहाँ से गुजरे, उन्होंने किसान को देखा और परेशान जानकर कहा- बेटा ! पछताओ मत, गलती  सभी से होती है। हम सभी गलती करते हैं। पर वही इन्सान बेहतर बनता जाता है, जो हर पल अपने से की हुई गलती से कुछ सीखता रहता है और उसे सुधारते हुए मुस्कुराहत के साथ आगे बढ़ता रहता है। हमारा हर क्षण कीमती होता है, उसे कभी भी बर्बाद नहीं करना चाहिए। 


किसान को अपनी भूल का अनुभव होते ही उसने उसे सुधारा और उस वन में चंदन के बहुत से पौधे लगाये।   


हमें भी अपनी भूल से सीख लेनी चाहिए और सुधार कर आगे बढ़ना चाहिए, क्योंकि पीछे की बातें सोचने से सिर्फ चिंता, परेशान और दुःख के सिवाय कुछ भी हासिल नहीं होता है और एक बात हमेशा याद रखें- जो बीत गया उसे हम कभी भी नहीं बदल सकते हैं, पर आने वाली जिन्दगी हम सार्थक सोच के साथ सुन्दर और बेहतर जरूर बना सकते हैं।


आज के पोस्ट में बस इतना ही !  



Image: Ek_Nai_Disha_2021

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