आज मैं आप सभी से एक बहुत ही छोटी मगर बहुत ही महत्वपूर्ण भावना के बारे में बात करुँगी। ये हमारा मन बहुत ही कमाल की चीज होती है, जिसमें प्रेम, करुणा, क्रोध और ना जाने कितने प्रकार की भावनाएँ हैं। ये हमारे स्वयं की इच्छा पर निर्भर करता है हम किस प्रकार की भावनाओं का प्रयोग करते हैं।
कभी-कभी ये भावनाएँ हमारे वश में नहीं होती हैं या फिर शायद हम इनको अपने वश में नहीं रख पाते हैं। जैसे कि अगर हमारे पास एक ऐसा कैंडीज से भरा बाक्स है, जो देखनें में एक जैसे हैं पर सभी का स्वाद एक दूसरे से अलग है। अब ये हम पर निर्भर करता है कि हम कौन सी कैंडी खायें और किसे संभाल कर रखें ?
प्रेम और करुणा से हम दूसरों को सुख और खुशी देते हैं, पर क्रोध हमारे जीवन की वो कैंडी है, जिसमें बस एक ही स्वाद है- कड़वा, पर करेली व नीम जैसा नहीं। करेली तो स्वास्थ्यवर्धक है और नीम आरोग्य औषधी, पर क्रोध की कड़वाहत ऐसी है, जो कि जहाँ से जन्म लेती है, उसे तो कष्ट देती ही है, साथ ही साथ, आस-पास के वातावरण को भी कड़वाहट से भर देती है। जाने-अनजाने हमें खुद भी पता नहीं चलता कि हम छोटी-छोटी बातों पर कितना क्रोध करने लगे हैं।
कुछ मन का नहीं हुआ तो गुस्सा, मन का हुआ फिर भी गुस्सा। ज्यादा मिला, कम मिला या नहीं मिला फिर भी गुस्सा। खाना पसन्द नहीं आया तो गुस्सा, किसी ने मन के विरुद्ध कुछ कह दिया तो गुस्सा। अपना सामान किसी के पूछे बिना छूने पर गुस्सा।
एक वजह हो तो बताऊँ। ऐसी ना जाने कितनी निरर्थक वजहें हैं, जिससे कि ये क्रोध जैसी भावना हमारे सुन्दर मन को नाहक ही जलाती रहती है। मैं मानती हूँ कि इस पर हमारा वश नहीं होता क्योंकि ये जब आती है तो इस पर हमारा कोई नियन्त्रण नहीं होता, जैसे कोई हवा से भरा बैलून, जिसे बस एक चुभन मिला नहीं कि फूट पड़ा। पर जिस प्रकार बैलून के फूट जाने के बाद उसका अस्तित्व खत्म हो जाता है, काश, उसी तरह गुस्से का भी अस्तित्व खतम हो जाता तो कितना अच्छा होता।
पर ऐसा नहीं होता है, गुस्से का अस्तित्व हमारे जीवन में बना रहता है, जो हमें और हमसे जुड़े लोगों के जीवन को दुःख पहुँचाता ही रहता है।
पर क्या हम इस भावना को नियन्त्रित नहीं रख सकते ? ज्यादा तो नहीं पर कोशिश जरुर कर सकते हैं, और इसका तरीका है-आत्ममंथन के द्वारा।
दोस्तों जब कभी भी आपको किसी भी छोटी या बड़ी बात पर गुस्सा आये तो आत्ममंथन करिये कि हमने जो व्यवहार किया है, जिस कारण से किया है, क्या वो वजह इतनी बड़ी है कि हम उसपर काबू नहीं पा सकते ?
सभी भावनाओं में ये भावना भी एक सुन्दर भावना है, ये मेरा मानना है, क्योंकि आग तो आग ही है, पर आग का प्रयोग हमारे ऊपर निर्भर करता है कि हम आग का उपयोग घर को जलाने के लिए करें या फिर दिया जलाकर घर को रोशन करने के लिए करें।
जाने-अन्जाने में आज बस इतना कुछ लिख गई। आज मेरे नन्हें से बेटे नें मुझसे कहा- मम्मी ! आप बहुत गुस्सा करने लगी हो, फिर मुझे समझ में आया ये हम सभी के साथ होता है कि हम नाहक ही इतना परेशान होते हैं, जबकि हमारे परेशानी की वजह इतनी बड़ी नहीं होती कि हम उस पर काबू न पा सके। मैं यह नहीं कहती कि आप गुस्सा न करें, क्रोध, जो किसी के भविष्य को बेहतर बनाये और जो किसी के हित में काम आये, तो ये क्रोध कढ़वा नहीं बल्कि शहद सा मीठा होता है।
Image:Google
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें