हम सभी ने गाँधी जी के द्वारा कही ये बात सुनी व पढ़ी होगी कि अहिंसा ही हमारा सच्चा धर्म होना चाहिए। कोई अगर एक गाल पर थप्पड़ मारे तो दूसरा गाल आगे कर देना चाहिए। मैं गाँधी जी के विचारों व उनके नजरिये को गलत नही ठहरा रही, क्योंकि गाँधी जी मेरे लिए भी पूजनीय हैं। पर मैं बस अपना नजरिया रख रही हूँ कि क्या ऐसा करने से कोई तीसरी बार हमें थप्पड़ नहीं मारेगा ? क्या गाँधी जी के अहिंसा के इस विचार में इतनी शक्ति है कि क्या हमारा ऐसा कार्य उस व्यक्ति के हृदय को परिवर्तित कर सकता है ?
परिधी हमेशा से अपने माँ की अच्छी व सच्ची बेटी थी। परिधी की माँ ने हमेशा ही उसे विनम्रता का पाठ पढ़ाया, उसे ही सुनकर वह बड़ी हुई थी। परिधी स्कूल से कालेज जाने लगी थी। एक दिन परिधी बेहद परेशान थी। सुबह से वह अपने कमरे सं बाहर भी नहीं आई थी। माँ ने परेशान होकर दरवाजे पर दस्तक दिया-“परिधी ! क्या बात है ? सुबह से ही तुम रुम में हो। कितना पढ़ाई करोगी ? बाहर आ जाओ। कुछ खा लो।” माँ को परेशान देख परिधी ने दरवाजा खोल दिया। परिधी की आँखें नम थीं। उसने कहा, “माँ ! आप ने आज तक मुझे जो कुछ बताया वह गलत बताया। माँ आप तो कहती थीं कि विनम्रता से पत्थर को भी पिघलाया जा सकता है। हमें हमेशा विनम्र रहना चाहिये” और यह कहते हुए वह रोने लगी।
माँ ने परिधी को गले से लगाया और जानना चाहा आखिर क्या कारण है कि परिधी इतना परेशान है ? परिधी ने बताया, “माँ, बहुत दिनों से मेरी सबसे अच्छी सहेली को कुछ लड़के रास्ते में छेड़ते रहते हैं और वह रोज उनसे मिन्नतें करती, पर वो अपनी हरकतों से बाज नहीं आते। यह सब देखकर उसके पिता ने उसको आगे न पढ़ाने का फैसला लेकर उसकी शादी करने के लिए मजबूर हो गये।
इस पर माँ ने परिधी को समझाया,“ बेटा ! मैंने तुम्हें कुछ गलत नहीं कहा था। पर यह सि़द्धांत मनुष्य की परिस्थिति व विवेक पर निर्भर करता है कि तीसरा थप्पड़ के लिए उसे अपना गाल आगे करने हैं या नहीं ? यदि भगवान ने हमें विवेक व शालीनता जैसी सुन्दर भावना से सजाया है तो मस्तिष्क भी हमें उन्होंने ही प्रदान किया है, जो हमें सही और गलत का निर्णय लेने की शक्ति भी प्रदान करते हैं। तीसरे थप्पड का इस्तेमाल हमें कब और कैसे करना है, इसका निर्णय हमारे सहनशीलता व विवेक पर निर्भर करता है। ये मैं यूँ ही नहीं कह रही हूँ क्योंकि आज मैंने नन्हें से जीव से सबक लिया है। आज मैं जब आँगन में बैठ कर चावल चुन रही थी तो एक चींटी अपने जीवन की राह में इधर-उधर भाग रही थी। छोटी मकड़ी उसे खाकर स्वयं को तृप्त करना चाहती थी। पर कुछ ही क्षणों में वह चींटी छोटे से मिट्टी के छेद में घुसकर दोबारा दूसरे छेद से, बहुत बड़ी संख्या में एकत्र होकर, उस मकड़ी पर हमला कर दिया और मकड़ी को वहाँ से भागने पर मजबूर कर दिया।
तो बेटा, साहस और विवेक हमारे पास ही होते हैं, पर हमें उसे कब और कैसे प्रयोग करना है, ये परिस्थिति पर निर्भर करता है।
इस छोटी सी कहानी के माध्यम से मैं आप सभी से बस इतना कहना चाहती हूँ कि अहिंसा एक सुन्दर धर्म है, जो हम सभी को सुमानव बनने की प्रेरणा देता है। पर ये सभी परिस्थिति में काम नहीं आता। अगर कोई व्यक्ति एक थप्पड़ एक गाल पर मारे और दोबारा दूसरा थप्पड़ दूसरे गाल पर यदि मारने का साहस करता है तो आप भूल जाइये कि ऐसे व्यक्ति का हृदय परिवर्तन सम्भव है। यदि तीसरी बार भी आपके विवेक को कोई चैलेंज कर और आपको आहत करे, तो तीसरी बार अपना गाल आगे करने वाले को मूर्ख नहीं तो और क्या कहेंगे ?
अपने मन को पढ़िये और जितनी सहनशक्ति हो उतना ही सहें, उसके बाद आगे बढ़ कर जवाब दें।
Image: Ek Nai Disha, 2021
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