क्या होती है आराधना ? इससे तो हम सभी परिचित होंगे। सभी के दिल में अपने आराध्य के प्रति सम्मान व प्रेम होता है ,जिसे झुठलाया नहीं जा सकता है। हम ऐसी शक्तियों को पूजते हैं, जो हमें जीवन जीने की शक्ति प्रदान करते हैं, जो हमें हर मुश्किलों से लड़ने की शक्ति देते हैं और जो हमारे हृदय में प्रेम रुपी पुष्प की बगिया को सींचने में हमारी मदद करते हैं। हम सभी के दिल में अपने आराध्य की प्रतिमूर्ति विद्यमान रहती है, जिसे सभी अलग -अलग रूपों में पूजते हैं। मैं भी पूजती हूँ, आप भी पूजते होंगे। और इस आराधना से हमने अपने भीतर एक शक्ति का संचार होते हुए भी महसूस किया होगा ।
पर यदि हमारी आराधना हमें थका दे ! हमें भीतर तक तोड़ कर रख दे ! तो क्या ऐसी आराधना उचित है ? यदि हमें आराधना के बदले धिक्कार मिले ! आराध्य हमें अप्रिय समझे ! हमारी तपस्या का प्रतिफल हमें दुख और आंसू से मिले ! तो क्या हम अपनी आराधना निःस्वार्थ भाव से कर सकेंगे ? आज मैं आपको एक ऐसी आराधिका से मिलवाती हूँ।
तनु की एक बहुत ही खूबसूरत दुनियाँ थी, जिसमें उसकी माँ, पिताजी व तनु थे । तनु अपने माता पिता की एकलौती संतान होने की वजह से उनका पूरा प्रेम व अपनापन पाती थी। तनु बड़े ही अच्छे संस्कारों में पली बढ़ी थी। उसने अपनी माँ को सदैव अपने पिता जी की आज्ञा का पालन करते व सेवा करते देखा था। माँ को पिता जी का इतना ख्याल रखते देखा था, जैसे कि वो कोई इंसान नहीं बल्कि ईश्वर हो, जिनकी आराधना वो सुबह-शाम, आँखे खुलने व रात को सोने तक किया करती थीं।
हाँ ! "आराधना" ही उसको कह सकते हैं। तनु ने यही नाम दिया था -अपनी माँ की पिता के प्रति समर्पण भाव को । वह अपनी माँ को अक्सर रात में रोते हुए देखती थी, पर उम्र कम होने की वजह से शायद माँ के आँखों से निकले आंसू की वजह वह समझ नहीं पाती थी। वह अपनी माँ से हमेशा सुनती आई कि पति ईश्वर का रूप होते हैं।
अब तनु बड़ी हो गई थी और अब उसका मस्तिष्क भी उम्र के साथ परिपक्व हो गया था। अब वह समझ गई थी कि माँ की आंसू का कारण क्या है ? क्यों उनके आँख हमेशा भीगे रहते हैं, जैसे बहुत कुछ कहना चाहते हो ? एक दिन, पिता जी को माँ के साथ बड़े ही कड़क लहजे में पेश आते देख, तनु की आखों में भी आंसू आ गए। पिता जी शायद बेटा ना होने की वजह से माँ से नाराज थे। पर माँ का इसमें क्या दोष था ? तनु ने माँ की आँखों में आँसू देखा। वह खुद को माँ के पास जाने से रोक न सकी।
उसने कहा,"माँ ! पिताजी को आपने इतने वर्षों तक इतना मान-सम्मान दिया, प्रेम देती रही, उनकी पूरी निष्ठा से सेवा करती रही, बदले में पिताजी ने आपको क्या दिया ? आप उनको कुछ कहती क्यों नहीं हैं ?" माँ ने कहा," नहीं बेटी ! ऐसा कभी मत कहना। वह मेरे लिए ईश्वर-स्वरुप हैं, जिनकी आराधना करना मेरे जीवन का उद्देश्य है, जो मैं करती रहूँगी। जब तुम्हारी शादी हो जायेगी, तभी तुम समझोगी। "
तनु ने कहा,"क्या मुझे भी अपने पति की ऐसी ही आराधना करनी होगी ? नहीं माँ ! मैं ऐसी आराधना नहीं करुँगी, क्योंकि जिस ईश्वर को हम पुष्प अर्पित करें और वो बदले में हमें काँटों का उपहार दें , जहाँ सम्मान के बदले तिरस्कार और आँसू मिले, ऐसी आराधना का क्या अर्थ है ? माँ ! मुझे माफ़ करना। जो आराधना हमारे शरीर और मन को दुखी कर दे, हमारा अस्तित्व मिटा दे तो इसका सिर्फ एक ही अर्थ होता है - या तो हमारी आराधना जरुरत से ज्यादा है या फिर आराध्य हमारी आराधना के योग्य नहीं हैं। मैं ऐसी आराधना को नहीं मानती। रही बात परमेश्वर को मानने की, तो वही व्यक्ति परमेश्वर का रूप हो सकता है, जो हमें प्रेम के बदले प्रेम व सेवा के बदले एक अच्छा जीवन दे, जिसे हम ख़ुशी से जी सकें। क्योंकि रिश्ते बंधन नहीं होते, बल्कि एक ऐसा प्यारा सम्बन्ध होता है, जहाँ प्रेम से दो जीवन अपने भविष्य के सुन्दर सपने सँजोते हैं। करना ही है तो, अपने उस अच्छाई की आराधना करिये, जिसे आपने अपने भीतर जिन्दा रखा है।"
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सुंदर प्रस्तुति..
जवाब देंहटाएंदीपा जी, आपका बहुत-बहुत आभार ...
हटाएंबढ़िया कहानी है। आपको बधाई।
जवाब देंहटाएंविरेन्द्र जी, आपको मेरी रचना पसंद आई, आपने अपना विचार प्रकट किया, जिसके लिए आभार ....
हटाएंइस टिप्पणी को एक ब्लॉग व्यवस्थापक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंसावन जी, आपने अपना विचार प्रकट किया, आभार ....
हटाएंबहुत अच्छी प्रस्तुति ..
जवाब देंहटाएंकविता जी, कॉमेंट के लिए आपका धन्यवाद !
हटाएंBahut hi achhi post hai. Share krne ke liye thanks.
जवाब देंहटाएंPls visit - www.achhipost.com
मेरी रचना पर अपना विचार देने के लिए आपका आभार, एक नई दिशा से जुड़े रहे ...
हटाएंइस टिप्पणी को एक ब्लॉग व्यवस्थापक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंआपका आभार अपना स्नेह मेरी पोस्ट के प्रति बनाए रखें, आपका हमेशा स्वागत है .....
हटाएंबहुत सुंदर है
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