ये तो हम सभी जानते हैं कि जीवन मुश्किलों का घर है। अगर हम इस सच्चाई से अनभिज्ञ रहें तो जीवन कितना आसान लगता है ! और यदि हम इस सच्चाई से परिचित हो जाते हैं ,तो हमारा जीवन जीना बहुत मुश्किल हो जाता है। हमारी मनोदशा भी ऐसी हो जाती है कि मानो सारी मुसीबतों का पहाड़ हम पर ही टूट पड़ा है और हम इससे शायद कभी उबर ही नहीं पाएंगे। मैंने पहले भी इस प्रकार की चर्चा अपने नन्हे से पोस्ट में की थी। आपको शायद याद भी होगा ,जो बाबा युवक को अपने सर पर पत्थर रख कर चलने को कहते हैं। क्यों याद आया ? पर इस बार मैं आपके लिए कुछ अलग लाई हूँ।
मैं जानती हूँ कि सभी के जीवन में कोई - न -कोई अपनी परेशानी होती है। कभी हम इसे चुटकियों में दूर कर लेते हैं , तो कभी यह हमारे सामर्थ्य से बाहर की होती हैं। बहुत से ऐसे भी मित्र होंगे, जो छोटी -छोटी परेशानियों से बाहर ही नहीं आ पाते हैं और इन परेशानियों के घेरे में उदास और परेशान होकर अपने जीवन को जीते जाते हैं। ये तो 16 आने सच्ची बात है कि परेशानी ना तो कभी बता कर आती है और ना ही हमारे पसन्द के मुताबिक ही होती है। और इन परेशानियों से कौन दोस्ती करना चाहेगा ? कोई भी नहीं ! क्योकि, भाई ! जिसे दोस्त बनाओगे, वो तो आपसे मिलने हर दूसरे रोज आया जाया करेगा। पर हम दूसरों की परेशानियों से दोस्ती कर लें तो ! क्या ख्याल है आपका ? यदि हम किसी की परेशानियों को समझकर,हमसे जो बन पड़े, अपने सामर्थ्य के अनुसार उसकी मदद करें तो क्या बुराई है ? आइये, हम सभी एक अनोखे मददगार के बारे में जाने।
एक आदमी गाँव से शहर रोजाना नौकरी करने जाया करता था। उसके रास्ते में एक लाचार वृद्ध बैठा रहता था, जिसे देखकर लगता था कि वो भिखारी तो नहीं पर जरुरत मंद जरूर है, जो अपने उम्र के आखिरी पड़ाव पर खड़ा है और अपने कमजोर शरीर को जिन्दा रखने के लिए लोगों के मदद की कामना लिए वहाँ रोज आ जाया करता था । फिर एक दिन उस युवक को जाने क्या सूझा कि उसने वृद्ध को अपने लंच-बॉक्स से एक रोटी निकाल कर दे दिया। वृद्ध व्यक्ति ने संकोच करते हुए रोटियाँ ले लीं ,और युवक के सामने ही खाने लगा। उस दिन के बाद, यह कार्य युवक के आदतों में शामिल हो गया। जब भी वह शहर आता, वृद्ध के लिए कुछ खाने को जरूर ले आता था। ऐसा कार्य करके उसको अदभुत आनन्द की अनुभूति होती थी और वृद्ध भी उस युवक की राह देखा करता था।
एक दिन, वृद्ध व्यक्ति को युवक की राह देखते -देखते शाम हो गई, पर वह युवक नहीं आया। वृद्ध भी अब अपने ठिकाने पर जाने के लिए उठा , तभी वृद्ध ने सामने एक युवक को बहुत परेशान देखा। वह हर आने-जाने वालों से ना जाने क्या कहता। लोग उसकी बातें सुनते, फिर थोड़ी देर के बाद आगे बढ़ जाते थे। वृद्ध व्यक्ति ने देखा कि ये तो वही युवक था, जो आज तक उसकी मदद करता आया था। वृद्ध उस युवक के पास जाकर बोले,"क्या हुआ बेटा ?" युवक ने सोचा कि लगता है ये मुझसे कुछ लेना चाहते हैं। युवक ने कहा,"बाबा ! आज मुझे माफ़ करना। मैं आज आपको कुछ दे नहीं सकता हूँ। किसी ने मेरा मोबाईल व पर्स चुरा लिया। मेरे पास तो घर जाने तक के भी पैसे नहीं है और कोई मेरी मदद भी नहीं कर रहा है और यहाँ मैं किसी को जानता भी नहीं हूँ।अब मैं क्या करूँगा ? कुछ समझ में नहीं आ रहा है।" वृद्ध ने कहा," बेटा ! चिंता मत करो" और उस वृद्ध व्यक्ति ने अपनी गठरी खोली और कुछ रुपयों से भरा हुआ थैला युवक के हाथ में रख दिया और बोले,"बेटा ! शायद इनसे तुम्हारी कुछ मदद हो जाये। तुमने आज तक मेरी मदद की है, ईश्वर की असीम कृपा है, जो मैं तुम्हारे काम आ पाया। तुम इसे रख लेना " और वृद्ध आगे बढ़ गया।
युवक भी अपनी मुठ्ठी में बंद रुपयों को लिए उस अनोखे मददगार के बारे में सोचते हुए बस में बैठ कर अपने घर के लिए चल दिया।
आप सभी से इस घटना के माध्यम से मैं यह कहना चाहती हूँ कि इसका अर्थ यह नहीं है कि हमारे द्वारा की गई मदद के बदले हमें कुछ प्राप्त ही हो,पर हमारे द्वारा किसी को की गई मदद हमें वापस लौटकर जरूर मिलती है। और जो अपने दिल को सुकून मिलता है वो ना तो हम बाजार से और ना ही बड़े -बड़े मॉल से खरीद सकते है। क्योकि उसकी तो कोई कीमत ही नहीं होती। वो तो बेशकीमती होती है और ना ही उसे कोई कम्पनी बना कर बाजार में बेच सकती है। सुकून तो हमारे अच्छे कर्मो के द्वारा हमें मुफ्त में प्राप्त हो जाता है। इसकी एक सबसे अच्छी बात यह है कि उसकी कोई एक्सपाइरिंग डेट भी नहीं होती है।
Image-Google
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वाकई में सुकूनदायक लेख है आपका। हमें भी सुकून मिला, पूरे सितंबर भर निराश रहने के बाद आज उम्मीद से बेहतर पढ़ने को मिला। वरना हम तो आपकी ब्लॉग के चक्कर लगाकर वापस लौट जाते थे।
जवाब देंहटाएंमृत्युंजय
www.mrityunjayshrivastava.com
मृत्युंजय जी ,आपको मेरी रचना पसंद आती है जानकार मुझे बहुत ही ज़्यादा खुशी होती है किसी भी रचना का प्रतिरूप कैसा है ये रचनाकार नही बता सकता है आप सभी के कमेंट मुझे और बेहतर लिखने को प्रेरित करते हैं ,आपका शुक्रिया ....
हटाएंवाकई में सुकूनदायक लेख है आपका। हमें भी सुकून मिला, पूरे सितंबर भर निराश रहने के बाद आज उम्मीद से बेहतर पढ़ने को मिला। वरना हम तो आपकी ब्लॉग के चक्कर लगाकर वापस लौट जाते थे।
जवाब देंहटाएंमृत्युंजय
www.mrityunjayshrivastava.com
बहुत-बहुत शुक्रिया ...
हटाएंBut sunder rachna
जवाब देंहटाएंरीतू जी ,आपके द्वारा दिए गये कमेंट का मुझे और मेरी रचना को सदा ही इंतजार रहता है आपके हौशला अफजाई के लिए दिल से शुक्रिया ...
हटाएंBut sunder rachna
जवाब देंहटाएंBhut hi sunder sadesh Rashmi ji
जवाब देंहटाएंबहुत-बहुत शुक्रिया ...
हटाएंBhut hi sunder sadesh Rashmi ji
जवाब देंहटाएंरश्मि जी,आपने अपने नपे-तुले शब्दों के माध्यम से बहुत ही अच्छे तरीके से सही बात बताया है कि हमारे द्वारा किए हुए सत्कर्म सदैव हमारे साथ ही रहते हैं और वे किसी ना किसी रूप में हमारे पास वापस ज़रूर आते हैं. आपकी कहानी भी बहुत अच्छी लगी..जिसके लिए आप बधाई की पात्र हैं..
जवाब देंहटाएंदीपा जी ,आप मेरी पोस्ट को हमेशा से पढ़ती रही हैं जिसके लिए आपका आभार और आपके कमेंट से मुझे कुछ नया लिखने की प्रेरणा हमेशा से मिलती रही है आपके अगले विचार का इंतजार रहेगा ,धन्यवाद ....
हटाएंजैसा की उपर किसी भाई ने लिखा है की पोस्ट का इंतजार करते करते पूरा सितम्बर निकल गया और आपकी कोई पोस्ट नही आई, उम्मीद भी लगभग ख़तम होने की कगार पर थी, पर इस बीच आपकी पोस्ट आई जो बेहद शानदार है, ऐसे ही अच्छी अच्छी पोस्ट लिखते रहिए और आगे बढ़ते रहिए.
जवाब देंहटाएंआपको मेरा प्रयास पसंद आता है, यह जानकार और भी अच्छा लिखने प्रेरणा मिलती है ,आप सभी का साथ ही हैं जो मैं इस मकाम तक पहुँच पाई , आप सभी का इतना साथ देने के लिए बहुत -बहुत आभार.....
हटाएंमदद करना तो स्वभाव होता है, ईश्वर का आशीष साथ हो लेता है
जवाब देंहटाएंरश्मि जी , आपने सही कहा कि जो लोग सहायता करते है उनके साथ सदा प्रभु का आशीष रहता है कमेंट करने के लिए आपका आभार ....
हटाएंरश्मि जी, कहते है ना कि अच्छाई किसी न किसी रूप में लौटकर जरूर आती है। सुन्दर प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंज्योति जी, आपने मेरे पोस्ट को पसंद किया, आपका आभार ! आगे भी आप अपने विचारों से हमें अवगत कराते रहिएगा ..धन्यवाद..
हटाएंरश्मि जी, कहते है ना कि अच्छाई किसी न किसी रूप में लौटकर जरूर आती है। सुन्दर प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंबार-बार आपके ब्लॉग पर आता हूँ, कुछ नया नहीं पाकर, पुरानी रचनाओं को पढ़कर ही नया अनुभव और नई ख़ुशी लेकर जाता हूँ। आपके अगले पोस्ट का इंतज़ार है, बेसब्री से।
जवाब देंहटाएंमृत्युंजय जी , आपका मेरे ब्लॉग के प्रति स्नेह देखकर ख़ुशी होती है। मेरा अगला पोस्ट आपको जल्दी ही मिलेगा। कमेंट के लिए आपका धन्यवाद !
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