कंकड़ -एक छोटा सा टुकड़ा ,जो शिला से टूटकर अलग हो जाने से स्वतः ही बन जाता है। जो अपने अस्तित्व की पहचान बनाने के लिए निरन्तर प्रयास करता रहता है। एक शिला, जो की गढ़े जाने के बाद धर्म और आस्था की प्रतिमूर्ति बन जाती है, पर हमारा ध्यान उस नन्हें कंकड़ पर नहीं जाता है, जो उस शिला का हिस्सा था, जिसे छीनी हथौड़े की चोट से अलग कर दिया जाता है। क्या कसूर होता है उसका ? कुछ लोगों का जीवन भी उस छोटे से कंकड़ के सामान ही होता है, जो निरन्तर अपने अस्तित्व की तलाश में प्रयत्नशील रहता है।
मैं सोचतीं हूँ कि क्या सिर्फ ऊँचे कुल में जन्म ले लेने मात्र से कोई महान व्यक्ति जाता है ? क्या वो सारे गुण उस व्यक्ति के व्यवहार में स्वतः ही आ जाते हैं ? नहीं। मेरा मानना है कि व्यक्ति के सुन्दर व्यक्तित्व और अच्छे मन का आइना उसके अच्छे कर्म होते है। यही सब उसके व्यक्तित्व की एक पहचान बनाते हैं। जो लोग ऐसा सोचतें हैं कि ऊँची जात, ऊँचे कुल में जन्म ले लेने मात्र से ही उनका भाग्योदय हो जाता है, तो उनकी ऐसी सोच गलत है। अपने कर्मों द्वारा व्यक्ति दूसरों के दिलों पर अपनी अमिट छाप छोड़ जाता है, जो जीवन पर्यन्त नहीं मिटती। हमें अपने कर्मों पर हमेशा भरोसा रखना चाहिए। क्योंकि कर्मो के द्वारा ही हम अपने भाग्य को संवार सकते है। समय का क्या है, वह कभी एक जैसा नहीं रहता।
खुद को कंकड़ समझ कर हम अपने अंदर छुपे गुणों को अनदेखा ना करें। क्योकि इसी कंकड़ के सहयोग से भवन की नींव का निर्माण होता है, जो ना जाने कितने लोगों के सुरक्षित जीवन जीने का स्थान बनता है। हमें खुद को कभी निराशा से घिरने नहीं देना चाहिए और अपने कर्मों में निरन्तर प्रयत्नरत रहना चाहिए। अपने भाग्य को ही सब कुछ समझने वाले लोगो से मैं ये कहना चाहती हूँ कि भाग्य कभी भी धोखा सकता है, परन्तु हमारे कर्म हमारा साथ कभी नहीं छोड़ते हैं। जिस भगवान श्री राम को रात में अयोध्या की राजगद्दी मिलने वाली थी,अगर भाग्य ही सब कुछ होता तो , उन्हें सुबह बनवास नहीं जाना पड़ता। हमें कभी भी भाग्य के भरोसे नहीं बैठना चाहिए। हमारे भाग्य हमारे कर्मो को निर्धारित नहीं करते ,मगर हमारे कर्म हमारा भाग्य जरूर बना सकतें हैं।
दिल्ली में एक म्यूजिक टीचर हैं, जो जन्म से ही देख नहीं सकते हैं,मगर उनको म्यूजिक यंत्र को बजाते देखकर कोई नही बता सकता है कि वो देख नहीं सकते हैं। उनकी हाथों की उँगलियों में ही हजार आँखें हैं, जो हर इन्स्ट्रूमेंट पर ऐसे चलतीं हैं, जैसे कि म्यूजिक यंत्रों की तारों को उनकी उँगलियों से प्यार हों। वो हर सुर को बिना देखे कैसे बजा लेते है, देखकर आश्चर्य होता है। बचपन से अपने इस दोष की वजह से वह परिवार के लोगों के ऊपर ये खुद को हमेशा बोझ समझने लगे थे। फिर गुरु जी के द्वारा संगीत की शिक्षा प्राप्त कर आज वह एक म्यूजिक इंस्टिट्यूट के नामी प्रशिक्षक हैं, जहाँ कोई भी स्टूडेंट म्यूजिक यंत्र में पारंगत हो सकता है। मेरे हसबैंड ने भी गिटार बजाना, उन्ही सर के द्वारा सीखा है और बहुत ही अच्छा बजाते हैं।
मेरा आप सभी से बस यही कहना है कि गुण और दोष उस ईश्वर की देन है, जिसे हमें पूरे दिल से स्वीकार करना चाहिए, पर दोष को कभी भी अपने प्रसिद्धि में बाधक नहीं बनने देना चाहिए। क्योंकि ऐसा कोई भी शख्स नहीं होता है, जिसमें कोई दोष ना हो। हमारे गुणों के बारे में कभी -कभी हमें खुद भी ज्ञात नहीं होता। तो गुणों को निखरने का अवसर दीजिये व अपने जीवन को सार्थक बनाइये।
Image-Google
Image-Google
achcha hai
जवाब देंहटाएंकमेंट के लिए धन्यवाद
हटाएंNice post
जवाब देंहटाएंकमेंट के लिए धन्यवाद
हटाएं