आज मैं आप सभी को कुछ ऐसी बातें बताना चाहती हूँ, जिसको हमारा मन कभी मनाने को तैयार नहीं होता है। मैं अपनी बीते दिनों की इससे संबंधित कुछ अविस्मृत यादें शेयर करना चाहती हूँ। आखिर यह शरीर क्या है, जो चलता -फिरता है और जब मृत्यु आती है, तो ऐसा क्या शरीर से निकल जाता है, जिससे ये शरीर निर्जीव हो जाता है। मैं हमेशा ऐसे न जाने कितने सवाल अपनी माँ से किया करती थी। माँ जो कि कम पढ़ी -लिखी थी, उनके पास न जाने कौन सी लाइब्रेरी की डिक्शनरी होती थी , मेरे सभी सवालों के जवाब उनके जुबान पर रखे रहते थे। एक दिन मैंने माँ से पूछ ही लिया ," माँ क्या भूत होते हैं ? सहेलियां हमेशा भूतों की कहानियां सुनाती रहती थी और कहती रहती थीं ,यहाँ मत जाओ, वहाँ मत जाओ।"
मेरी माँ ने गहरी साँस ली और मुस्कुराई और कहा,"भूत नहीं होता। मगर आत्माएं होती है ,जो कुछ जगहों पर हमेशा से रहती हैं ।" उस समय मुझे मेरी माँ की बातें बचकानी लगी, मुझे लगा कि वो बस ऐसे ही कह रही हैं। पर जब मुझे इसका वास्तविक अनुभव हुआ तो मेरा मन सिहर उठा।
बात उन दिनों की है, जब मैं इंटर में थी। हम सभी भाई -बहनो के इग्जैम्स सर पर थे। हमारा घर छोटा सा था और हमारी ज्वाइंट फैमिली थी। हमारे घर में बड़ी माँ की बेटी की शादी थी। घर में बड़ा शोर -गुल था, जिससे हमारी पढ़ाई में बाधा पहुंचती थी। फिर घर में इसी दौरान मौसी जी का आना हुआ। उन्होंने हमारी परेशानी को देखकर हमें उनके नए मकान में जाने की सलाह दी, जो काफी समय से बंद पड़ा था और घर से कुछ ही दूरी पर था। माँ ने कहा,"ठीक है ! बच्चे वहीं चले जायेंगे और एग्जाम ख़त्म होने तक वहीँ रहकर तैयारी करेंगे।"
हम सभी उस घर में चले गए। सोमवार को मेरा पेपर था। रविवार की शाम को मैं उस नए घर में पढाई कर रही थी और मेरी बहन भी मेरे साथ पढ़ रही थी। वो मेरे जोर -जोर से पढ़ने की आदत से परेशान हो कर छत पर बने कमरे में पढ़ने चली गई। पढ़ते - पढ़ते, रात का साढ़े ग्यारह गया था। घर में चारों तरफ सन्नाटा पसरा हुआ था। तभी मैं कमरे से बाहर निकली और किचन में गई , जिसकी खिड़की चौड़े -चौड़े ग्रिल से बनी थी और उसपर शीशा नहीं लगा था अचानक मेरी निगाह उस खिड़की पर पड़ी और मैंने जो देखा उस पर शायद भरोसा करना मुश्किल था।
मैंने खिड़की से बाहर हाथ टिका कर रखे मेहंदी लगे चूड़ियों से भरे हाथ देखे। मुझे लगा जैसे कोई मुझे ही देख रहा हो। मेरी इतनी हिम्मत नहीं हुई कि मैं वहां से हट सकूँ। मेरी आवाज भी नहीं निकल पा रही थी। तभी मेरी निगाह किचन के दरवाजे गई , मैंने देखा कि वो बंद पड़ा था। मुझे मेरी माँ की बातें उस दिन समझ में आ गई कि आत्मा होती हैं। वो दिन और आज का दिन है, मैं उस घर में फिर कभी दुबारा नहीं गई। जब भी उन दिनों को याद करती हूँ , तो आज भी शरीर में एक अजीब सी सिहरन हो जाती है।
Image-Google
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So horrible..
जवाब देंहटाएंSo horrible..
जवाब देंहटाएंऐसा मेरे साथ सचमुच में हुआ है..बहुत भयावह था वो सब..
जवाब देंहटाएंaatma to hoti hi hai par sabhi ko is par bisvas nhi hota
जवाब देंहटाएंकॉमेंट के लिए धन्यवाद!
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