आज कल हमारे घर के भीतर और बाहर लड़कियाँ कहीं भी सुरक्षित नहीं हैं , ऐसा क्यों ? कुछ घटनायें बीते वर्ष में घटित हुई हैं , जो इतनी घृडित और वीभत्स हैं ,जिसकी याद जेहन में आते ही मन सिहर उठता है। न जाने कितनी बेटियों की इज्जत को मिटटी में मिला दिया गया , जिससे उन्हें अपनी जान गवानी पड़ी ,और तो और , समाज में बेटियों का इज्जत से जीने का अधिकार भी छीन लिया जाता है। हमारी बच्चियाँ आजादी से कहीं जा नहीं सकती , कौन से व्यक्ति की नियत कब ख़राब हो जाये ,कुछ कहा नहीं जा सकता। क्या इसके लिए सिर्फ पुरुष ही जिम्मेदार हैं ? नहीं ! इस असुरक्षा के लिए लिए हम सभी जिम्मेदार हैं।
आजकल , भारतीय पहनावे को लोग भुलाकर और पश्चिमी सभ्यता के पहनावे को अपनाकर खुद को दूसरों बेस्ट दिखाने की होड़ में लगे रहते हैं।माता - पिता को फुर्सत नहीं है कि वो अपने बच्चों की ओर ध्यान दे सके कि हमारे बच्चे क्या करते हैं , किन लोगों के बीच रहते हैं , कहाँ जाते हैं , उनके मित्र कैसे हैं ? उनको कुछ भी जानकारी नहीं होती। और तो और , बच्चों को उनकी जरुरत और और उम्मीद से ज्यादे सुविधायें और पॉकेट मनी दे देते हैं , जिसका बच्चे खुल कर मनचाहा दुरुपयोग करते हैं। हम अपने माता -पिता के दिए गये संस्कारों को भूल जाते हैं. हमारे पिता जी हमारे हाथों में पैसे नहीं देते थे बल्कि हमारी सारी जरूरतें पूरी कर देते थे, और समय -समय पर रोक -टोक होती थी कि कहाँ गई थी,किसके साथ थी ? हमें बुरा भी लगता था। मगर आज जब हम समाज में बेटियों के साथ बुरी घटनाओं के घटित होने की खबर पढ़ते हैं , तो हमें दुःख होता है , पर क्या हमें अपनी सोच बदलनी नहीं चाहिये ?
जब बेटियां सुरक्षित होंगी तो ही स्वस्थ्य समाज का निर्माण संभव है। समाज में महिलाओं के प्रति मान -सम्मान कोई खंडित न कर सके, इसके लिए हमें अपने बच्चों में जनम के समय से ही महिलाओं का सम्मान करना सिखाना होगा , क्योंकि हमारे बच्चे ही आगे चलकर एक स्वस्थ्य समाज का निर्माण करेंगे , जहाँ महिलाओं को पूरा सम्मान व अधिकार मिलेगा और वह भी आजादी से खुलकर सांस ले सकेंगी।
आज मुझे एक वाकया याद आ गया , जब मेरी शादी नहीं हुई थी, मैं सिलाई सीखने सेंटर जाती थी। वहां एक लड़की बहुत ही उदास रहती थी , न किसी से कुछ कहती थी और ना ही किसी के साथ बैठती थी। मगर उसके चेहरे को देख कर यही लगता था कि उसके चेहरे पर न जाने कितने प्रश्न है , जिसका जवाब वह हम सभी से चाहती है। सभी लड़कियों को छोड़कर उस एक लड़की पर ही मेरी नज़र टिकी रहती थी। एक दिन मैं सेंटर पर कुछ पहले ही आ गई थी। फिर मैंने यह देखा कि गुमसुम सी रहने वाली लड़की भी उस दिन जल्दी आ गई। वो मुझे देखकर सहम कर कोने में बैठ गई, कहीं मैं उससे बात न करने लगूँ। मैं उसे देख कर उसके पास गई और उससे कहा -"मुझे आपसे कुछ कहना है, आप इतना चुप -चुप क्यों रहती हैं ? क्या आप हम लोगों से नाराज हैं ?" उसके बाद उसने बैग उठाया और उसी बारिश में घर के लिए रवाना हो गई। मुझे खुद पर गुस्सा आ रहा था की मैं क्यों गई उससे बात करने। फिर उस लड़की के बारे में मैडम से पता चला कि उसे कुछ मनचले लड़के रास्ते में रोज छेड़ते हैं। इस बात से वह बहुत परेशान थी।
अगर उसने मुझसे या किसी से मदद मांगी होती तो कोई न कोई हल जरूर निकलता। क्या वो मनचले लड़के उसके सेंटर छोड़ने से उसे परेशान नहीं करते होंगे ? कैसी भी परेशानी हो ,हमें अपने माता-पिता और मित्रों को जरूर बताना चाहिए , तभी हम सुरक्षित रह सकते हैं। शेष अगले पोस्ट में..
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Bilkul sahi baat hai..
जवाब देंहटाएंकॉमेंट के लिए धन्यवाद!
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