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बुधवार, 10 फ़रवरी 2016

बेटी का दर्द


BETI KA DARD

मैं एक बेटी हूँ ,अपने माँ- पापा की, आप सभी की  तरह। मैं आप सभी से  कहना चाहती हूँ कि क्या घर और समाज में हमें वो दर्जा मिल गया है, जो हमें मिलना चाहिए और जो हर व्यक्ति का हक़ होता है। क्या बेटियों की स्थिति बदल गई है  या नहीं ? लोग तो बदल गए हैं ,मगर बेटिओं के प्रति समाज का विचार कभी नहीं बदला। मगर क्या हम वाकई में बदले हैं ? क्या हम अभी नही खुद को पुरूषों के आधीन  मानते हैं ? हमें लगता उनसे ही हमारा अस्तित्व है। किन्तु ,हमें अब अपने आपको परिवर्तित करना होगा ,खुद की एक पहचान बनानी होगी। जब बेटे  की शादी के लड़की देखी जाती है लड़की का चेहरा ,चाल ढाल , रंग ,रूप यहाँ  तक की नौकरीरत भी चाहते है।

 मगर लडके के बारे में कोई जांच पड़ताल नहीं  करता न ही कोई ये सोचता है की लड़की की इस बारे में क्या राय  है ,क्यों ? कुछ लोग ऐसे भी हुए  है, जो समाज को दिखने के लिए गरीब घर की बेटी को अपना तो लेते है मगर न उसे परिवार में  जगह देते है और न ही दिल में। और हमेशा कहा जाता है की क्या ले कर आई ? मगर कोई ये नहीं समझता कि वो क्या छोड़ कर आई है। यहाँ तक ये सभी लोग लड़की को पसंद करने से पहले पूरी तरह से आस्वस्त होना चाहते हैं , मगर ये कोई नहीं देखता की हमारी क्या  एक्सपेक्टेशन है, हमसे शादी से पहले हमारी पसंद को नजर अंदाज़ कर दिया जाता है।  लड़के का ,  जमींन , रुपये से सम्पन्नता  ही क्या  एक लड़की के सुखी जीवन  के लिए काफी है ?

आज मैं आपको अपने एक दूर के रिश्तेदार की  कहानी सुनाने जा रही हूँ। उसके साथ एक बहुत ही अजब वाकया हुआ।  गाँव के एक रिश्तेदार की बेटी की शादी में हमें जाना था, जो रिश्ते में हमारे मांमा जी लगते थे। माँ के पास खत आया और मांमा  जी ने कुछ आर्थिक मदद की मांग की।  माँ -पापा से  जो हो सका वो साथ लेकर हम सभी के साथ  शादी में शामिल होने के लिए गये। शादी की बारात में जब दूल्हा मंडप में नहीं आया तो सभी कन्या पक्ष के लोग घबराये। सभी कानाफूसी करने लगे। पापा ने कहा कि मैं देखकर आता हूँ  कि क्या बात है ? फिर पता चला की लड़के के पिता ने बाइक ,जो मांग में शामिल नहीं थी , की मांग कर रहे थे और लड़की के माता -पिता जी देने  देने में अश्मर्थता जता रहे थे , हाथ जोड़ कर उन्हें मना रहे थे। फिर बाइक न मिलने पर  बारात लौट जाने की बात सामने आई। माता-पिता का बुरा हाल था , बेटी भी दुल्हन बनी पत्थर सी खड़ी थी ,मगर आँखों के आंसू थम नहीं रहे थे। 

 सबके दिल  की धड़कन रुक सी गई थी। अब  हमारी लड़की से ब्याह कौन करेगा  , क्या होगा अब हमारी लड़की का --ये सोच सोच कर माता -पिता रो रहे थे। तभी किसी ने एक हाथ हमारे मामा जी के कंधे पर रखा। वह 27 -28 वर्ष का नवजवान युवक था , वर पक्ष से ही आया था, किन्तु  सभी चीजों को देख कर रुक गया था। उसने बोला की अंकल क्या आप अपनी बेटी का हाथ मेरे हाथोँ  देंगे।  फिर क्या था  सभी की नजरों में वो हीरो बन गए, एक रियल हीरो जो सभी के  दिल में छा गए। वो दिन मेरे जेहन में सदा के लिए कैद हो गया।  आज हमें और हमारे समाज को ऐसे ही हीरों की बहुत जरुरत है। बाकी की बातें अगले पोस्ट में.. 


Image-Google

5 टिप्‍पणियां:

  1. सही कहा अपने, लेकिन क्या कभी किसी ने लड़के की पीड़ा समझने की कोशिश की जब उसके साथ शादी में धोखा होता है। लेकिन अगर इस बात को कोई उठाये तो उसको ही लोग गलत कहेंगे।
    मैं स्त्री जाती का तहे दिल से साममन करता हूँ। लेकिन समाज को हर पहलु देखना चाहिए।
    धन्यवाद।

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    1. इस कहानी में एक पक्ष की सोच है,पर वास्तविकता यही है कि नारीऔर पुरुष एक दूसरे के पूरक है वो तभी पूर्ण होते हैं जब साथ होते हैं ..आपके विचार के लिए धन्यवाद ...

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